Kalisiya Ki Gair Fani Buniyad Masih Masloob


आब और कलाम से बनी, वह नई ख़िलकत खूब । 

आसमान से उसने आके, चुन लिया दुल्हन को, 

और अपना खून बहा के, ख़रीदा है उसको।


2. दुनिया की हर एक कौम से, वह चुनी गई है, 

नजात के एक ही बंध से, वह मिल कर बंधी है। 

खुदावंद उनका एक ही, ईमान एक, एक खुराक, 

विलादत एक ही सबकी, उम्मीद एक, एक पोशाक।


3. वह दुश्मनों के सामने सित्म रसीदा है, 

गो फूट और अदावतों से अक्सर रंजीदा है। 

तो भी मुकद्दस कहता, कब तक? ऐ पाक खुदा, 

यह गम की रात जब गुज़रे, दिन होगा खुशी का।


4. अब दिक्कत और मुशक्कत और जंग में जो दुशवार, 

वह करती कामिल राहत, और चैन का इन्तज़ार । 

दीदार तब होगा कामिल जब होगी जंग तमाम, 

जलाल में होगी शामिल, कलीसिया पुर आराम।