Janch Mujhe Janch Tu Ae Khuda


मेरे अन्देशों को आज़मा, और उन्हें तू पहचान।


2. मैं बिल्कुल दिल का अन्धा हूँ, और अक्ल का तारीक, 

गुनाह के बन्द में बंधा हूँ, और बन्दों में शरीक।


3. बख़्श अपनी रौशनी बन्दे को, अन्धेरा छूटेगा, 

जो फज़ल तेरा मुझ पर हो, तो बन्द भी टूटेगा।


4. मुझ आसी को रिहाई दे, गुनाह से ऐ खुदा, 

और मुझे अपने करम से, राह अपनी पर चला।