Tu Bhi Badal Ke Dekh
कोरस-तू भी बदल के देख, गुनहगार ज़िन्दगी,
कब तक बनी रहेगी, तेरा भार ज़िन्दगी।
1. अच्छा नहीं कि आदमी, सोकर गुज़ार दें,
मिलती है बस नसीब से इक बार ज़िन्दगी।
2. बेकार सर ज़मीन पर उठाता है आदमी,
महमा है चार रोज़ की बेकार ज़िन्दगी।
3. सबको नहीं नसीब है मान जहान में,
कौन जो नहीं है हकदार ज़िन्दगी।
4. दामन मसीह-ए-पाक का छोड़ा अगर नदीम
खाती रहेगी ठोकरें हर बार ज़िन्दगी।
5. जिसने वफा की राह में खुद को मिटा दिया,
क्यों न उसी का साथ दे सरकार ज़िन्दगी।
6. राह-ए-वफा में सैंकड़ों हायल हैं लरज़िशें
राही न भटक जाए गुनहगार ज़िन्दगी।